भगवान शिव का प्राचीन मंदिर जिसे गोला गोकर्णनाथ और छोटी काशी के नाम से जाता है।
By -तहक़ीक़ात
दिसंबर 13, 2024
0
आइए जानते हैं भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर जिसे गोला गोकर्णनाथ मंदिर और छोटी काशी के नाम से जाना जाता है...
भारत में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के गोला तहसील में भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जिसे गोला गोकर्णनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है, इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है, इसे छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी यह शिव मंदिर स्थित है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार आज से हजारों वर्ष पहले त्रेतायुग में लंका के राजा रावण ने जो भगवान शिव का अनन्य भक्त था भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 20 वर्षों तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने रावण से वरदान मांगने के लिए कहा, रावण ने कहा हे प्रभु मुझे कोई वरदान नहीं चाहिए मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ लंका चलें और वहीं निवास करें। यह सुनकर सभी देवता भयभीत हो गए, इंद्र आदि देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्होंने कहा कि अगर भगवान शिव रावण के साथ लंका चले जाएंगे तो सृष्टि का चक्र रुक जाएगा और रावण का कभी अंत नहीं हो पाएगा, हे ब्रह्मदेव कोई ऐसा उपाय करो जिस रावण की यह योजना कामयाब ना हो पाए, ब्रह्मदेव ने भगवान शिव से कहा कि आप सोच समझ कर निर्णय लेना।
भगवान शिव ने रावण से कहा मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं इसलिए मुझे तुम्हारे साथ चलने में कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसके साथ मेरी एक शर्त है कि जिस भी स्थान पर तुम मुझे रख दोगे मैं उसी स्थान पर विराजमान हो जाऊंगा, रावण को अपने बल पर बहुत घमंड था उसने कहा मैं आपको सीधे लंका पहुंच कर ही रुकूंगा। कहा जाता है कि जब रावण भगवान शिव को लेकर लंका की ओर जा रहा था तो वह इस स्थान से गुजर रहा था तभी देव योग से उसे बहुत तेज लघुशंका लगी जिसे वह सहन नहीं कर सका, वहीं पर गाय चरा रहे एक चरवाहे को उसने शिवलिंग को पकडा कर कहा मैं जब तक लघु शंका करने के लिए जा रहा हूं तब तक तुम इस शिवलिंग को हाथ में पकड़ कर खड़े रहना और इसे जमीन पर मत रखना ऐसा कहकर वह लघु शंका करने के लिए चला गया। देवताओं के राजा इंद्र की माया से रावण की लघुशंका खत्म ही नहीं हो रही थी और तभी भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ाना शुरू कर दिया जिससे उस चरवाहे ने चिल्लाकर रावण से कहा मैं इस शिवलिंग का भार अब सहन नहीं कर सकता हूं, मैं इसे जमीन पर रख रहा हूं, ऐसा कहकर उसने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। चरवाहे ने जैसे ही शिवलिंग को भूमि पर रखा तुरंत रावण की लघुशंका समाप्त हो गई और वह चरवाहे की तरफ दौड़ा जिससे भयभीत होकर चरवाहा भाग कर कुएं में कूद गया। रावण वापस आया और उसने शिवलिंग को उठाने का बहुत प्रयास किया परंतु वह उसे हिला भी नहीं सका जिससे क्रोधित होकर रावण ने शिवलिंग को अपने अंगूठे से धरती में दबा दिया जिससे लिंग पर गाय के कान की आकृति बन गयी और वह वापस लंका चला गया। उसके बाद भगवान शिव ने उस चरवाहे की आत्मा को वरदान दिया कि आज से हमारे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी और जो भी शिव भक्त मेरे दर्शन के लिए आएगा उसे भूतनाथ के दर्शन के बाद ही पूर्ण फल की प्राप्त होगी।
गाय के कान की आकृति के कारण ही इस शिवलिंग को गोकर्णनाथ के नाम से जाना जाता है।
रावण ने जहां पर लघुशंका की थी वहां पर एक झील बन गई जो आज भी मंदिर के बायीं तरफ स्थित है जिसे गोकर्ण सरोवर के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास में ही एक प्राचीन कुआं स्थित है।
यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं, सावन के महीने में यहां अपार भीड़ होती है, सावन के महीने में कांवड़ियों के जत्थे यहां के मुख्य आकर्षण का केंद्र होते हैं।
सावन के महीने में नागपंचमी के बाद आने वाले पहले सोमवार को यहां पर भूतनाथ का भव्य मेला लगता है।
गोला गोकर्णनाथ शिव मंदिर जाने के लिए सड़क मार्ग और रेल मार्ग दोनों से जाया जा सकता है।
एक टिप्पणी भेजें
0टिप्पणियाँ