महाकुंभ के आयोजन स्थल का चयन कैसे होता? क्या आपको पता है?

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महाकुम्भ का महत्व और कैसे होता है महाकुम्भ के आयोजन स्थल का चयन?

महाकुम्भ का महत्व-

     कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का अवसर भी देता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ में स्नान करने से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।

     यह धार्मिक आयोजन सामाजिक और सांस्कृतिक समागम का प्रतीक माना जाता है। हिंदू संस्कृति और परंपराओं में कुंभ मेले का विशेष महत्व है। यह अद्वितीय मेला भारत के चार पवित्र स्थानों पर आयोजित किया जाता है। इसमें खगोलीय घटनाओं का भी गहरा प्रभाव माना जाता है।


कैसे होता है महाकुम्भ के आयोजन स्थल का चयन?     

     महाकुंभ का आयोजन केवल चार स्थानों पर ही होता है, जिसमें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन शामिल हैं। महाकुम्भ स्थल का चयन ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार, गुरु (बृहस्पति) और सूर्य की निश्चित राशियों में उपस्थिति के आधार पर महाकुंभ के स्थान का चयन किया जाता है।


प्रयागराज महाकुंभ-

     जब गुरु वृष राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तो महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित होता है। 2025 में यही स्थिति होने के कारण महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है।


नासिक महाकुंभ-

     जब गुरु और सूर्य सिंह राशि में होते हैं, तो यह आयोजन नासिक में होता है। अगला महाकुंभ नासिक में 2027 में होगा।


हरिद्वार महाकुंभ-

     जब गुरु कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तो महाकुंभ हरिद्वार में लगता है। यह योग 2033 में बन रहा है अतः हरिद्वार महाकुंभ2033 में होगा।


उज्जैन महाकुंभ-

     जब सूर्य मेष राशि में और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तो महाकुंभ उज्जैन में लगता है। उज्जैन का अगला महाकुंभ 2028 में होगा।

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