तालिबान का पाकिस्तानी सेना पर बड़ा हमला, दो चौकियों पर कब्जा व 19 सैनिक मारने का किया दावा!

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तालिबान का पाकिस्तानी सेना पर बड़ा हमला, दो चौकियों पर कब्जा व 19 सैनिक मारने का किया दावा!

     अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, शनिवार को अफगानिस्तान सेना ने पाकिस्तान के घातक हवाई हमले का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के अंदर कई ठिकानों पर हमला बोल दिया जिसमें 19 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। हमला इस कदर भीषण था कि पाकिस्तानी सेना को अपनी दो सीमा चौकियां छोड़ कर पीछे हटना पड़ा।

     बताते चलें, पिछले मंगलवार 24 दिसंबर को पाकिस्तानी सैन्य विमानों ने तहरीक-ए-पाकिस्तान के आतंकी शिवरों को नष्ट करने और विद्रोहियों को मारने के लिये हवाई हमले का अभियान चलाया था जिसमे लगभग 50 लोग मारे गए, जिसमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे शामिल थे। तालिबान सरकार ने इसे बर्बर कृत्य बताते हुई कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि वह इसका जल्दी ही बदला लेगा।


तालिबान लड़ाकों ने बोला हमला

     28 दिसम्बर शनिवार को 15000 तालिबान लड़ाकों ने अफगान-पाक सीमा पर हमला बोल दिया और डूरंड लाइन के करीब पाकटिआ व खोस्त इलाकों में स्थित पाकिस्तानी सैन्य चौकियों को जला दिया। हमला इतना भयंकर था कि पाक सेना बेबस नजर आयी।

     अफगान रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसके सुरक्षा बलों ने डूरंड रेखा के दूसरे तरफ स्थित पाकिस्तान सैन्य चौकियों पर जवाबी हमला किया है, हमले उन्हीं क्षेत्रों में किए गए हैं जिनका इस्तेमाल अफगानिस्तान की धरती पर हमले को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान द्वारा किया गया था। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता इनायतुल्लाह ख़्वारजामी ने हमलों के बारे में और कोई जानकारी नहीं साझा की है।


क्यो बढ़ा विवाद?

     पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा आपस में सटी हुई है। इससे पहले भी दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हुई थी, लेकिन इस बार मामला एयर स्ट्राइक तक पहुंच गया है। 2021 में पाकिस्तान की सरकार और तहरीक-ए-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के लिए एक समझौता हुआ था इसमें तहरीक-ए-पाकिस्तान ने मांग की थी कि उसके लड़ाकों को जेल से रिहा किया जाए साथ ही कबायली इलाकों से पाकिस्तान के सुरक्षाबलों को हटाया जाए। हालांकि, यह समझौता ज्यादा दिन नही चला और लगभग 30 दिन बाद ही टूट गया था। इसके बाद एक साल तक सरकार और तहरीक-ए-पाकिस्तान के बीच बातचीत होती रही इसके बाद भी कोई समझौता नहीं हो पाया। इस पर तहरीक-ए-पाकिस्तान ने फरमान जारी कर अपने लड़ाकों से कहा कि पाकिस्तान में जहां भी संभव हो, उसके लड़ाके हमला करें।


क्या है डूरंड रेखा विवाद?


     लगभग 128 वर्ष पहले ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच एक सीमा रेखा स्थापित हुई थी जिसे डूरंड रेखा के नाम से जाना जाता है। 1893 में ब्रिटिश सिविल सेवक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और अफगानिस्तान के तानासाह शासक अमीर अब्दुर्रहमान के बीच डूरंड सीमारेखा दोनों की आपसी सहमति से अस्तित्व में आई। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तब डूरंड रेखा पाकिस्तान को विरासत में मिली किंतु अफगानिस्तान ने इसे स्पष्ट रूप से मानने से इनकार कर दिया। 1996 में अफगानिस्तान में पहली बार तालिबान ने सत्ता हथियाने के बाद डूरंड रेखा को खारिज कर दिया था, तालिबान की मदद से एक उग्र कट्टर इस्लामिक संगठन तहरीक-ए-पाकिस्तान अस्तित्व में आया उसका उद्देश्य भी सीमा को समाप्त करना है क्योंकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा के नजदीक रहने वाले पश्तूनों का आरोप है कि इस सीमा ने उनके घरों कों बांट दिया और भाई-भाई में बंटवारा कर दिया। वे 100 से भी ज्‍यादा सालों से उस इलाके में अपने परिवार और कबीले के साथ रहते थे, लेकिन अंग्रेजों ने एक साजिश के तहत पश्तून बहुल इलाकों के बीच से यह रेखा खींची। इसका परिणाम यह हुआ है कि पश्तून दो देशों के बीच बंट गए।

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