एक बच्चा दोपहर में नंगे पैर कुछ बेच रहा था। लोग उससे मोलभाव कर रहे थे, तभी एक सज्जन की नजर उसके ने उस बच्चे के पैरों पर पड़ी बच्चे को नंगे पैर देखकर सज्जन को अति दुःख हुआ। वह भागकर गया, पास ही की एक दुकान से जूते लेकर आया और बच्चे को देते हुए कहा- बेटा! यह जूते पहन लो। लड़के ने फटाफट जूते पहने, बड़ा खुश हुआ और उस आदमी का हाथ पकड़ कर कहने लगा- आप भगवान हो!
वह आदमी घबराकर बोला- नहीं... नहीं... बेटा! मैं भगवान नहीं।
फिर लड़का बोला- तो फिर जरूर आप भगवान के दोस्त होंगे, क्योंकि मैंने कल रात ही भगवान से प्रार्थना की थी कि भगवानजी, मेरे पैर बहुत जलते हैं, मुझे जूते लेकर दे दो। बच्चे की बात सुनकर वह आदमी आँखों में पानी लिये मुस्कराता हुआ चला गया, पर वो जान गया था कि भगवान का दोस्त बनना ज्यादा मुश्किल नहीं है।
प्रकृति ने दो रास्ते बनाये हैं- देकर जाओ या छोड़कर जाओ। साथ लेकर के जाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
सनातन धर्म के अनुसार अंतिम अवस्था में व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्म, पुण्य और पाप उसके अगले जन्म का निर्धारण करते हैं। जीवनकाल में व्यक्ति अगर पाप करता है तो उसे नरक में यातना भोगनी पड़ती है, और पुण्य या अच्छे कर्म से स्वर्ग मिलता है।
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