नम्र बनो, कठोर नही!

तहक़ीक़ात
By -
0

     एक संत बहुत बूढ़े हो गये और उनको लगा कि अब उनका अंतिम समय निकट आ गया है तो उन्होंने अपने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया और सबसे पूंछा, मेरे मुंह मे अब कितने दांत बचे हैं? सभी शिष्यों ने मुंह मे झांका और बोले, महाराज! आपके दांत तो कई वर्ष पहले ही समाप्त हो चुके हैं, अब एक भी दांत शेष नही बचा।

संत ने फिर पूंछा- जीभ तो बची है ना?

सभी शिष्यों ने कहा- जी हां!

संत ने पूंछा- यह क्या बात हुई, जीभ तो जन्म के समय भी थी और अब भी है पर दांत तो उसके बहुत बाद में आये थे और जल्दी चले गए। बाद में आने वालों को तो बाद में जाना चाहिए, पहले कैसे चले गए।

शिष्यों ने कहा- महाराज! हमको इसका कारण समझ मे नही आया!

     तब संत ने धीमी आवाज में कहा- यही बात बताने के लिए मैंने तुम सबको यहां बुलाया है। देखो! वाणी अब तक इसलिए विद्यमान है क्योंकि इसमें नम्रता है जबकि दांत कठोर थे इसलिए बाद में आने फलस्वरूप भी चले गए, कठोरता ही इनकी समाप्ति के कारण बनी।

इसलिए यदि अधिक जीना चाहते हो तो नम्र बनो, कठोरता कमजोर करती है।


एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)