महापराक्रमी, स्वामिभक्त घोड़े शुभ्रक की कहानी जिसने इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया।

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महापराक्रमी, स्वामिभक्त घोड़े शुभ्रक की कहानी जिसने इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया।


     यह बात उस समय की है जब 1192 ईस्वी में तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच लड़ा गया और जिसमें राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान पराजित हो गए और दिल्ली पर मोहम्मद गौरी ने कब्जा कर लिया तथा अपनी सत्ता स्थापित की और उसने दिल्ली का शासन अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दिया।

     कुतुबुद्दीन ऐबक अत्यंत ही क्रूर शासक था जिसने गुलाम वंश की स्थापना की और अपना साम्राज्य विस्तार करना प्रारंभ कर दिया, उस समय भारत के समस्त राजपूत शासक आपस में लड़ रहे थे इसका फायदा उठाकर उसने एक-एक कर राजपूत शासकों को पराजित करना प्रारंभ कर दिया।

     कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1210 ईस्वी में मेवाड़ पर आक्रमण किया और मेवाड़ के राजकुमार कर्ण सिंह को बंदी बना लिया, राजा का खजाना व अन्य बहुमूल्य वस्तुएं भी लूट ली। राजकुमार कर्ण सिंह के पास एक घोड़ा था जिसका नाम शुभ्रक था, कुतुबुद्दीन ऐबक घोड़े शुभ्रक और राजकुमार कर्ण सिंह को बंदी बनाकर लाहौर ले आया, शुभ्रक राजकुमार कर्ण सिंह का स्वामिभक्त घोड़ा था तथा वह बहुत बलशाली भी था। राजकुमार कर्ण सिंह ने कैद से भागने का भरसक प्रयास किया परंतु वह पकड़े गए जिससे नाराज होकर कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजकुमार कर्ण सिंह को मौत की सजा सुनाई और उसने सैनिकों को आदेश दिया की राजकुमार कर्ण सिंह का सिर काटकर पोलो मैच खेला जाए। सैनिकों ने उसके आदेश का पालन किया और राजकुमार का सिर कलम करने के लिए जन्नतबाग लेकर गए जहां पोलो मैच खेला जाना था। कुतुबुद्दीन ऐबक राजकुमार कर्ण सिंह के घोड़े सुब्रक पर सवार होकर मैच खेलने के लिए जन्नतबाग में पहुंचा और उसने सैनिकों को आदेश दिया कि गेंद की जगह कर्ण सिंह का सिर काटकर उससे से पोलो खेला जाएगा।

     जैसे ही सैनिकों ने कर्ण सिंह का सिर काटने के लिए उनको नीचे झुकाकर तलवार निकाली, अपने स्वामी को मुसीबत में देखकर स्वामी भक्त घोड़े शुभ्रक ने कुतुबुद्दीन ऐबक को नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उछल-उछलकर उसके सीने पर कई बार वार किया जिससे कुतुबुद्दीन ऐबक वहीं पर मर गया और मौका पाकर राजकुमार कर्ण सिंह घोड़े शुभ्रक पर सवार होकर भागने में सफल हो गए। घोड़े ने तीन दिन लगातार दौड़कर राजकुमार को चित्तौड़ पहुंचा दिया, घोड़े से उतरकर राजकुमार ने जैसे ही घोड़े की गर्दन पर हाथ फेरा घोड़ा नीचे गिरा और मर गया! लेकिन मरकर भी वह अपने स्वामी को सकुशल चित्तौड़ पहुंचा दिया।

     जबकि इतिहास में बताया गया है कि कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत पोलो मैच खेलते समय घोड़े से गिरकर हुई, लेकिन जो व्यक्ति बचपन से घुड़वारी कर रहा हो और उसने सैंकड़ों लड़ाइयां लड़ी हो उसका घोड़े से गिर कर मरना असहज लगता है।

     आज भी राजकुमार कर्ण सिंह के स्वामिभक्त साहसी घोड़े का नाम चित्तौड़ गढ़ के इतिहास में दर्ज है।

     लेकिन विडंबना की बात यह है कि भारतीय इतिहासकारों ने एक वफादार जानवर की स्वामिभक्ति और उसके शौर्य को लोगों तक नहीं पहुंचने दिया।


अगले भाग में हम एक और महा पराक्रमी वीर शासक महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीर कहानी आपको बताएंगे!

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