आज से 250 साल पहले अफगानिस्तान नाम का कोई देश नहीं था। अंग्रेजों के द्वारा डूरंड लाइन बनाए जाने के बाद जो देश बना उसका नाम ही अफगानिस्तान पड़ा। पूरी दुनिया में आज कल ये कहा जा रहा है कि अफगानिस्तान "साम्राज्यों की कब्रगाह", अंग्रेजी में कहें तो "ग्रेवयार्ड ऑफ एम्पायर्स" है।
पश्तून मुसलमानों का मंगोल से दुश्मनी का कारण! आइए जानते हैं विस्तार से!
तालिबानी दरअसल पश्तून नस्ल के मुसलमान हैं, जिनको अंग्रेजों ने अपनी भाषा में पठान कहा। हिंदुस्तान में पठान शब्द प्रसिद्ध हो गया और पाकिस्तान-अफगानिस्तान के इलाके में आज भी इनको पश्तून ही कहा जाता है। पश्तून मुसलमानों का मंगोल से दुश्मनी का कारण मुख्य कारण मंगोलों के द्वारा किया गया पश्तूनों का नरसंहार, जिसमे मुख्य आक्रमण इस प्रकार हैं..
चंगेजखान का अफगान पर हमला
साल 1219 में मंगोलिया के चंगेज़ खान ने अफगानिस्तान पर हमला किया था और वहां पश्तूनों यानी पठानों को भयंकर तरीके से पराजित किया था। चंगेज़ के बहुत सारे लड़ाके अफगानिस्तान में ही रुक गए थे और उन्होंने वहां अफगान औरतों से बच्चे पैदा किए जिनको हजारा मुसलमान कहा जाता है।
तैमूरलंग का अफगान पर हमला
उज्बेकिस्तान के तैमूर लंग ने 1398 में अफगानिस्तान पर हमला कर दिया इस हमले में तैमूर लंग ने पश्तूनों का भयंकर कत्लेआम किया। इतिहासकारों ने हिसाब किताब लगाया है कि 15 लाख से ज्यादा अफगानों यानी पश्तूनों से सिर तैमूर लंग ने काट डाले थे। तैमूर लंग की नस्ल की बात करें तो वो तुर्क और मंगोल दोनों था। यानी दूसरी बार पश्तूनों को मंगोलों ने ही भयंकर तरीके से पराजित किया।
बाबर का काबुल पर कब्जा
1504 में तैमूर और चंगेज खान के वंशज मुगल बाबर ने भी अफगानिस्तान के काबुल पर कब्जा कर लिया और बाबर ने भी पश्तूनों को जमकर मार लगाई थी। बाबर भी आधा मंगोल तो था ही।
यही वजह है कि तीन-तीन बार मंगोंलों के द्वारा पीटे जाने की वजह से अफगानों और खासकर पश्तूनों के अंदर मंगोलों से बहुत नफरत है। ये नफरत एक हजार साल से अफगानों और तालिबानियों के खून में मौजूद है।
अफगानियों का बदला
अफगानियों ने 19वीं सदी में हजारा मुसलमानों से बदला लिया। यहां के अफगान शासक अब्दुल रहमान ने 3 लाख 40 हजार हजारा मुसलमानों का सिर्फ इसलिए कत्ल करवा दिया क्योंकि वो मंगोल चंगेज खान के वंशज थे।
यहीं से कहावत पैदा हुई कि 'पश्तून पीढ़ियों तक अपनी दुश्मनी याद रखते हैं'।
अन्य युद्ध जिसमे अफगानों को हार का सामना करना पड़ा
इसके बाद जब मुगलों ने दिल्ली पर शासन शुरू किया तो कई राजपूत राजाओं ने अफगानिस्तान को हराया था जिसमें राजा मान सिंह और जोरावर सिंह का नाम इतिहास में दर्ज है ।
1518 में खतोली (वर्तमान में कोटा) के युद्ध में भी अफगानों को राजपूतों ने बुरी तरह हराया था।
1519 में धौलपुर के युद्ध में भी राजपूतों ने अफगानों को हराया था।
बयाना के युद्ध में भी राणा सांगा ने अफगानों को हराया था। भारत में जो भी विदेशी ताकत हमला करने आई थी वो अफगानों को कुचलते हुए ही आगे बड़ी थी।
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